Monday 1 August 2011

नाना जी के साथ चलेंगे

-कृष्ण शलभ

नाना जी के साथ चलेंगे,
चलो आज तो मेले में

नाना जी के साथ आज सब
बच्चे मेले जायेंगे.
मेले में जी, सारे बच्चे
चाट- पकौड़ी खायेंगे.
तुम भी चलना साथ
करोगे क्या तुम बैठ अकेले में ?

हाँ, हर साल खिलौने वाला
आता शम्भू गेट पर.
वहां खिलौने मिल जाते हैं,
भैया सस्ते रेट पर .
इक-दो लेंगे, हमें कौन से
भर कर लाने ठेले में

हम भारत माता के बेटे

-कृष्ण शलभ

हम भारत माता के बेटे, अपना देश महान।
इसकी धूल हमारी रोली, यह अपना अभिमान।

पहरा देता अडिग हिमालय, पावन नदियॉं यमुना-गंगा।
लालकिले पर, फर-फर फहरे, देखो अपना अरे तिरंगा।

विजयी विश्वे तिरंगा प्याहरा, अपना पावन गान।
इसकी धूल हमारी रोली, यह अपना अभिमान।

प्रेम-प्यार से गूँजें इसमें, वाणी ईश्व र अल्ला की।
काशी विश्वनाथ हर गंगे, शहनाई बिसमिल्ला की।

नानक, सूर, कबीर, जायसी की अपनी पहचान।
इसकी धूल हमारी रोली, यह अपना अभिमान।

हम सब इसके फूल महकते, यह है हम सबकी फुलवारी।
इस पर ऑंच न आने देंगे, देखो यह है कसम हमारी।

जग में उँचा नाम रहे, बस है इतना अरमान।
इसकी धूल हमारी रोली, यह अपना अभिमान।

धूप

-कृष्ण शलभ

बिखरी क्या चटकीली धूप
लगती बड़ी रुपहली धूप

कहो कहाँ पर रहती बाबा
कैसे आती जाती है
इतनी बड़ी धूप का कैसा
घर है, कहाँ समाती है
बिना कहे ही चल देती, है
क्यों इतनी शरमीली धूप?

क्या इसको टहलाने लाते
सूरज बाबा दूर से
देर रात तक ठहर न पाते
दिखते क्यों मजबूर से
जब देखो तब सूखी, होती
कभी नहीं क्या गीली धूप

कभी पेड़ से चुपके-चुपके
आती है दालान में
और कभी खिड़की से दाखिल
होती लगे मकान में
आग लगाती आती, है क्या
यह माचिस की तीली धूप!

टेसू माँगे

-कृष्ण शलभ

टेसू माँगे चना-चबेना
माँगे दूध-मलाई जी
गर्मी माँगे हवा सुहानी
सर्दी गरम रजाई जी

टेसू माँगे दीपक बाती
बाँटे ढेर उजाला जी
सूरज बाँटे ढेरों सोना
खोल धूप का ताला जी

टेसू गाये गीत रसीले
करता हल्ला-गुल्ला जी
जाने क्या-क्या गटक गया है
अब माँगे रसगुल्ला जी

मिट्ठू माँगे हरी मिर्च तो,
चिड़िया दाना-पानी जी
बाबा जी से बिल्लू माँगे
किस्से और कहानी जी

चले हवा

कृष्ण शलभ

मेरी सुनती नहीं हवा,
अपनी धुन में चले हवा
बाबा इससे बात करो,
ऐसे कैसे चले हवा

जाड़े में हो जाती ठंडी
लाती कोट रजाई
साँझ सवेरे मिले, बजाती
दाँतों की शहनाई
सूरज के आकर जाने तक ही
बस थोड़ा टले हवा

अफ़लातून बनी आती है
अरे बाप रे जून में
ताव बड़ा खाती, ले आती
नाहक गर्मी खून में
सबको फिरे जलाती,
होकर पागल, खुद भी जले हवा

जब जब हौले-हौले चलती
लगती मुझे सहेली
और कभी आँधी होकर,
आ धमके बनी पहेली
मन मर्ज़ी ना कर अगर तो,
नहीं किसी को खले हवा

किरन परी

-कृष्ण शलभ

चम-चम, चम-चम, चाँदी जैसे
पंख खोल इक किरन परी
रात मुझे सपने में जाने
कहाँ-कहाँ ले उड़ी फिरी

चटपट आसमान तक जा कर
झट नीचे आ जाती थी
जहाँ घूमती वहाँ-वहाँ का
सारा हाल बताती थी
नदियाँ, नाले, पर्वत, झरने
घूमे धरती हरी भरी

चंदा मामा जी-भर देखे
लेकिन सूरज नहीं मिला,
अगर कहीं मिलता, उससे भी
बढ़ कर लेते हाथ मिला
खिल-खिल करती मिली चाँदनी
थी तारों से घिरी-घिरी

धऱती, अंबर, सात समंदर
उड़ते-उड़ते कहती थी
देखो-देखो, वहाँ दूर इक
जादूगरनी रहती थी
जो आलू से शेर बनाती थी
मिर्ची से सोन चिरी

एक किरन

-कृष्ण शलभ
एक किरन सूरज की देती
है सारे जग को उजियारा
एक दीप माटी का जल कर
पी लेता सारा अँधियारा

एक बूँद सीपी में ढल कर
बन जाती है सच्चा मोती
एक सत्य में बड़े झूठ से
लड़ जाने की ताक़त होती

एक धरा है एक गगन है
एक सुनो ईश्वर कहलाता
मिल-जुल सबसे करो प्यार तुम
बड़ा एकता का है नाता

अमर कहानी

-कृष्ण शलभ
पड़ी चवन्नी तेल में रे,
गाँधी बाबा जेल में

चले देश की ख़ातिर बापू
ले कर लाठी हाथ में
सारा भारत खड़ा हो गया
गांधी जी के साथ में
दिखा दिया कितनी ताक़त है
सचमुच सबके मेल में

काट गुलामी की जंजीरें
रच दी अमर कहानी
अंग्रेज़ों के छक्के छूटे
याद आ गई नानी
हारी मलका रानी भैया मजा,
आ गया खेल में

छोड़ विदेशी बाना, पहनी
सूत कात कर खादी
तकली नाची ठुम्मक ठुम्मक
बोल-बोल आज़ादी
आधी रात चढ़ गया,
भारत आज़ादी की रेल में।

ओ री चिड़िया

-कृष्ण शलभ
जहाँ कहूँ मैं बोल बता दे
क्या जाएगी, ओ री चिड़िया
उड़ करके क्या चन्दा के घर
हो आएगी, ओ री चिड़िया।

चन्दा मामा के घर जाना
वहाँ पूछ कर इतना आना
आ करके सच-सच बतलाना
कब होगा धरती पर आना
कब जाएगी, बोल लौट कर
कब आएगी, ओ री चिड़िया
उड़ करके क्या चन्दा के घर
हो आएगी, ओ री चिड़िया।

पास देख सूरज के जाना
जा कर कुछ थोड़ा सुस्ताना
दुबकी रहती धूप रात-भर
कहाँ? पूछना, मत घबराना
सूरज से किरणों का बटुआ
कब लाएगी, ओ री चिड़िया
उड़ करके क्या चन्दा के घर
हो आएगी, ओ री चिड़िया।

चुन-चुन-चुन-चुन गाते गाना
पास बादलों के हो आना
हाँ, इतना पानी ले आना
उग जाए खेतों में दाना
उगा न दाना, बोल बता फिर
क्या खाएगी, ओ री चिड़िया
उड़ करके क्या चन्दा के घर
हो आएगी, ओ री चिड़िया।

Sunday 31 July 2011

सूरज जी

सूरज जी  तुम !
 इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो !!


लगता तुमको नींद न आती
और न कोई काम तुम्हें
ज़रा नहीं भाता क्या मेरा
बिस्तर पर आराम तुम्हें

ख़ुद तो जल्दी उठते ही हो‚ मुझे उठाते हो
सूरज जी तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो !!



कब सोते हो‚ कब उठ जाते
कहाँ नहाते-धोते हो
तुम तैयार बताओ हमको
कैसे झटपट होते हो
लाते नहीं टिफ़िन‚
क्या खाना खा कर आते हो !
सूरज जी तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो !!


रविवार आफ़िस बन्द रहता
मंगल को बाज़ार भी
कभी-कभी छुट्टी कर लेता
पापा का अख़बार भी
ये क्या बात‚ तुम्हीं बस छुट्टी नहीं मनाते हो !
सूरज जी तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो !!

है चाहता बस मन तुम्हें

-कृष्ण शलभ
शीतल पवन, गंधित भुवन
आनन्द का वातावरण
सब कुछ यहाँ बस तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें

शतदल खिले भौंरे जगे
मकरन्द फूलों से भरे
हर फूल पर तितली झुकी
बौछार चुम्बन की करे
सब ओर मादक अस्फुरण
सब कुछ यहाँ बस तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें

संझा हुई सपने जगे
बाती जगी दीपक जला
टूटे बदन घेरे मदन
है चक्र रतिरथ का चला
कितने गिनाऊँ उद्धरण
सब कुछ यहाँ बस तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें

नीलाभ जल की झील में
राका नहाती निर्वसन
सब देख कर मदहोश हैं
उन्मत्त चाँदी का बदन
रसरंग का है निर्झरण
सब कुछ यहाँ बस तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें

Monday 25 July 2011